Kulhad: मिट्टी के कुल्हड़ओं की बढ़ी मांग, स्थानीय कुम्हारों के लोटे अच्छे दिन
SINGRAULI: मोदी सरकार में एक तरफ जहां स्किल इंडिया मेक इन इंडिया एवं अन्य कई ऐसी स्कीम को लाया गया जहां पर स्थानीय स्तर पर एवं भारतीय उत्पादों को प्राथमिकता के तौर पर प्रोत्साहित किया गया
जिसके बाद से लोगों में काफी हद तक बदलाव देखा जा रहा है एवं स्थानीय स्तर की बात करें तो सिंगरौली जिले में इन दिनों मिट्टी से बने कुल्हड़ एवं मिट्टी के गमलों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है जिसके बाद से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के चेहरे पर रौनक लौट रही है
एवं लगातार बढ़ते कुल्हड़ की मांग के कारण अब स्थानी कुम्हारों को उनका काम मिल रहा है एक तरफ जहां बड़ी मुश्किल से जीवन यापन के लिए संसाधनों को जुटाने वाली यह कुमार बेरोजगार होते दिखाई पड़ रहे थे अब वह अपने कामों में व्यस्त दिखाई पड़ते हैं
ऐसा संभव हो पाया है सिर्फ इस वजह से कि जिले के जिला मुख्यालय सहित विभिन्न क्षेत्रों में लगातार मिट्टी के कुल्हड़ की चाय लगातार मशहूर होती जा रही है जिससे कि बाजार में कुल्हड़ Kulhad की मांग बढ़ी है।
चाय के स्टॉल में बढ़ रही कुल्हड़ Kulhad की मांग
आमतौर पर चाय पीने के लिए कांच की ग्लास का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता था अब जिला मुख्यालय बैढ़न सहित ग्रामीण अंचलों में स्थित चाय की दुकानों में कुल्हड़ वाली चाय की मांग बढ़ जाने से चाय के स्टॉल में कुल्हड़ आमतौर पर दिखाई पड़ने लगे हैं जिसका फायदा स्थानीय स्तर की मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को भी मिल रहा है
दरअसल मिट्टी के कुल्हड़ से एक तरफ जहां चाय के स्वाद में निखार आ जाता है तो वही दिन प्रतिदिन कुल्हड़ वाली चाय की बढ़ती मांग के कारण अब स्थानीय कुम्हारों को रोजगार प्राप्त हो गया।ट्रेन के सफर में अक्सर आपने चाय-चाय आवाज लगाते हॉकर के हाथ में मिट्टी की कुल्हड़ देखी होगी, जिसमें गर्मागर्म चाय भर कर वह यात्रियों को परोसता है और यात्री भी इस चाय की चुस्की के साथ यात्रा का पूरा मजा लेते हैं।
नुक्कड़ की दुकानों पर भी ये मिट्टी वाली कुल्हड़ नजर आ जाती है। इस कुल्हड़ में चाय पीने का अपना ही मजा है। इन माटी की कुल्हड़ों में चाय पीने का पूरा फील तो आता ही है, साथ ही ये केमिकल फ्री प्रोडक्ट आपकी सेहत के लिए भी फायदेमंद है।
जी, हां प्लास्टिक के कप में डाली गई गर्म चाय कैंसर जैसी घातक बीमारियों का खतरा पैदा कर सकती है, लेकिन अपनी देसी कुल्हड़ आपको ऐसे किसी जोखिम में नहीं डालती बल्कि सेहत को लाभ पहुंचती है।अब कुल्हड़Kulhad चुक्का प्याली निर्माण कार्य में लगें कुम्हार परिवारों के समक्ष अब बेहतरी की उम्मीदें जगी हैं।
इन परिवारों का कहना है कि इतनी उम्मीद है कि अब थर्माेकोल व प्लास्टिक की जगह कुल्हड़ चुक्का प्याली के मांग बाजार में बढ़ेगी तो पुश्तैनी कारोबार में पुनः चार चांद लगेगी।
विभिन्न गांवों में कुम्हार परिवार सिर्फ त्योहारो में ही अपनी पुश्तैनी कारोबार को करने को मजबूर थे। वहीं सरकार की ओर से थर्माेकोल व प्लास्टिक का उपयोग पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रतिबंध लगाया गया है।
स्थानीय कुम्हारों के दाल- रोटी का जरिया ये उनका मिट्टी का बर्तन ही होता है। इसी के कारोबार से उनका पेट चलता है। हालांकि हाल के दिनों में जिस तरह से थर्माेकोल व प्लास्टिक की मांग बढ़ी तो व्यसाय पर बुरा असर था।
जब शादी-विवाह या दीपावली, छठ पूजा जैसे अवसरों पर ही बिक्री होती थी। अब सरकार की इस प्रयास का सराहना करते हुए कहते हैं कि उम्मीद है कि सालों भर बिक्री होगी। पर्यावरण संरक्षण तो होगा ही। कुम्हारों के दिन फिरेगा।
कुल्हड़ सेहत का भी रखता है ख्याल Kulhad also takes care of health
मिट्टी वाले कुल्हड़ बिल्कुल प्राकृतिक होते हैं, इनमें किसी तरह का कोई केमिकल नहीं होता, ऐसे में इनमें चाय पीने से आपको किसी बीमारी का खतरा भी नहीं रहता।
जबकि फोम या प्लास्टिक केमिकल युक्त होते हैं।चाय की दुकानों में या ट्रेन में कुल्हड़ Kulhad में चाय पीना आपको किसी भी तरह के इंफेक्शन से बचा सकता है। दरअसल, होता ये है कि जब आप शीशे के या प्लास्टिक के कप में चाय पीते हैं, तो इस बात की संभावना हो सकती है कि दुकानदार उसे साफ तरीके से न धोता हो, ऐसे में इंफेक्शन का खतरा हो सकता है,
क्योंकि एक ही कप में कई लोग चाय पीते हैं।प्लास्टिक के कप में चाय पीना घातक रोगों को न्योता देने जैसा है। प्लास्टिक में गर्म चाय डालने से कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा रहता है,
जबकि कुल्हड़ Kulhad पूरी तरह नेचुरल है और इसके साथ ऐसा जोखिम नहीं होता।मिट्टी वाली कुल्हड़ में अल्कलाइन होता है जो पेट में गैस नहीं बनने देता। कुल्हड़ वाली चाय पीने से गैस या एसिडिटी की संभावना कम रहती