SINGRAULI NEWS : औद्योगिक नगरी सिंगरौली कोयला खदानों के लिए विख्यात सिंगरौली जिले में मजदूरों की जान के साथ किस कदर खिलवाड़ होता है.
इसका ताजातरीन उदाहरण सामने आया है दरअसल जिले में संचालित कोयला खदानों में कार्यरत मजदूरों के लिए कई तरह की प्रमुख गाइडलाइन बनी हुई है जिस पर कंपनियों को मजदूरों से कार्य लेना है परंतु कंपनियां संबंधित कार्यों को कराने के लिए संविदाकार को कुछ अंश कार्य कर दे कर सिर्फ अपने कार्य को कराने पर ही विश्वास रखते हैं.
जबकि प्रिंसिपल एंपलॉयर की जिम्मेदारी बनती है कि वह कंपनी के हितों को ध्यान में रखते हुए उत्पादन एवं मजदूरों की जान माल की भी सुरक्षा हक़दार है तो वही कंपनी सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखकर कार्य कराने के लिए सुरक्षा विभाग के सुरक्षा अधिकारियों के जिम में या कार्य होता है परंतु जिम्मेदार सुरक्षा विभागीय यदि संबंधित कार्यों को देख कर अनदेखा करें तो इसे क्या कहा जाए।
हक मांगने पर निकाला जाता है मजदूरों को
अंचल सिंगरौली के बरगवां थाना क्षेत्र अंतर्गत आने वाले अमिलिया कोल ब्लॉक के अंतर्गत कार्य कर रहे संविदा कार्य के मजदूरों ने बताया कि संचालित खदानों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी के साथ मजदूरों की जान से खिलवाड़ का आरोप मजदूरों ने लगाया है.
इसके अलावा मजदूर यहां तक बताते हैं कि यहां पर कार्यरत मजदूर कंपनी प्रबंधन को लेकर यदि किसी तरह से हड़ताल या फिर वेतन संबंधी एवं अन्य सुविधाओं को लेकर धरना या फिर हड़ताल पर बैठते हैं तो कंपनी प्रबंधन ऐसे मजदूरों को नौकरी से हटा देता है ऐसा आरोप पूर्व में कार्यरत मजदूरों ने लगाया है ।
मजदूरों की माने तो खदान में कार्यरत कर्मचारियों को सुरक्षा किट भी संविदाकार के द्वारा उपलब्ध नहीं कराया जाता है बिना सुरक्षा उपकरण के खदान में कार्य करना मजदूरों की जान से खिलवाड़ करने जैसा है। बड़ा सवाल तो सुरक्षा व्यवस्था को संभालने वाले सुरक्षा विभाग पर है जिम्मेदार इस पर ध्यान नही दे रहे हैं।
बिना सुरक्षा उपकरण के कार्य करना मजदूरों की जान से खिलवाड़ करने जैसा
दुनिया के तमाम देशों के कोयला खदानों में मजदूरों की हालत लगभग एक जैसी है। इनकी हालत हर वक्त खस्ता बनी रहती है। इनकी जिंदगी हर समय खतरों से खेलती है। तरह-तरह के दुखों ने इन्हें घेर रखा है। इनकी समस्याओं और परेशानियों को दूर करने के नाम पर चल रहे एनजीओ इनके हालात सुधारने में नाकाम रहते हैं। पेट, आंख और सांस की बीमारियां इनकी जिंदगी का हिस्सा होती हैं। ये तनाव और दिल संबंधी बीमारियों के अभ्यस्त हो जाते हैं। कोयले की जहरीली धूल के असर से सांस की एक न एक खतरनाक बीमारी इन्हें दबोचे रहती है।
इस बीमारी को ‘कोल वर्कर्स न्यूमोकोनियोसस’ या ‘ब्लैक लंग’ या काला फेफड़ा नाम से भी जाना जाता है। यह बीमारी लाइलाज है। ऐसे में मजदूरों के लिए सुरक्षा उपकरण दिया जाना एक अनिवार्य वस्तु है परंतु सुरक्षात्मक उपकरण को नजरअंदाज करना मजदूरों की जान के साथ खिलवाड़ करने जैसा कहना गलत नहीं होगा।