SINGRAULI NEWS : औद्योगिक नगरी सिंगरौली में लगातार बढ़ते औद्योगिकीकरण एवं बढ़ते प्रदूषण से अब क्षेत्र की जनता बेहाल होने लगी है सिंगरौली जिले के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर प्रदूषण के कारण लोगों का जीना हराम हो गया है.
एक तरफ जहां स्थानीय लोगों को कोयले की धूल ने परेशान कर रखा है वहीं दूसरी तरफ फ्लाई एस की राख परेशानी का सबब बनी हुई है। इसके साथ ही क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में आ चुकी है दरअसल बीते कई दशकों पूर्व में एक तरफ जहां सिंगरौली जिले के विभिन्न हिस्सों में घने वनों से आच्छादित हुआ करते थे क्षेत्र में पर्यावरण को लेकर कोई भी विसंगतियां नहीं थी, हर तरफ हरियाली एवं स्वच्छ वातावरण लोगों को मिला करता था.
परंतु जिले में औद्योगिक इकाई की स्थापना के बाद से जिले के उन हालात में बदलाव होना शुरू हो गया। औद्योगिक इकाइयों के ना होने से एक तरफ जहां क्षेत्रीय लोग जिले में निवासरत हैं.एवं वन संपदा सहित खनिज संपदा से परिपूर्ण इस धरा पर चारों ओर हरियाली ने अपना कब्जा जमाया हुआ था उस समय तक किसी ने यह भी नहीं सोचा होगा कि आगे आने वाले समय में सिंगरौली का भविष्य बेहद कष्टदाई होने वाला है। जिले में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के साथ ही जिले के पर्यावरण के साथ खिलवाड़ शुरू हो गया एक तरफ जहां औद्योगिक इकाइयों के विकास के लिए जमीन अधिग्रहित कर क्षेत्र में स्थित वनों की आहुति दे दी गई वहीं दूसरी तरफ कंपनियों के द्वारा काटे गए वृक्षों के स्थान पर नए पौधे रोपने का प्रावधान सौंप दिया गया ।
वर्ष 2007-8 के दरमियान सिंगरौली जिला अस्तित्व में आने के बाद औद्योगिक इकाइयों की प्रसंदीदा जिला बनता चला गया जिले के विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना तो बड़ी ही तेजी के साथ हो गए और उसके साथ ही क्षेत्र के पर्यावरण के साथ खिलवाड़ भी शुरू हो गया हर क्षेत्र से काफी संख्या में वृक्षों की कटाई हो गई परंतु काटे गए वृक्षों के अनुपात में लगाए जाने वाले पौधे जिम्मेदारों सहित कंपनियां तक भूल गई।
क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा प्रदूषण
SINGRAULI NEWS : सिंगरौली जिले में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ध्यान न देकर अपनी ही धुन में काम कर रही कंपनियों ने संरक्षण की बजाय प्रदूषण जिले को दे दिया है। जिसका परिणाम यह हुआ है.
कि जिले में प्रदूषण का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि हर वर्ष दिवाली के समय में जिले के शहरी इलाके में पटाखों की बिक्री से लेकर पटाखों के जलाने तक को प्रतिबंधित कर दिया जाता है
ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिले में बढ़ रहे प्रदूषण का प्रमुख कारण क्या यह पटाखे हैं और जिले में कार्य कर रही कंपनियों की भागीदारी प्रदूषण में नहीं है सिर्फ पटाखों पर ही प्रतिबंध लगाना बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम में क्या कारगर उपाय हैं ? दरअसल इस पूरे मामले पर औद्योगिक इकाइयों पर प्रशासनिक अमला अपनी कार्रवाई करने से बचने को लेकर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री एवं जलाए जाने पर प्रतिबंध को रोककर कोरम पूरा कर देता है
पर हकीकत तो यह है कि जिले में प्रदूषण के बढ़ते ग्राफ के नियंत्रण को लेकर प्रशासनिक अमला किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा है, और इसका खामियाजा क्षेत्र की आम जनता को चुकाना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधि इस बात से कोई इत्तेफाक नहीं रखते हैं दरअसल बीते कुछ वर्ष पूर्व में क्षेत्र की सांसद रीति पाठक का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें कि उन्होंने भी माना था कि सिंगरौली जिले के लोग कोयला खाते हैं कोयला थूकते हैं एवं कोयले पर ही जीते हैं।
पर्यावरण के नाम पर लाखों का खर्च करती है कंपनियां, परिणाम शून्य
सिंगरौली जिले में भले ही प्रदूषण का ग्राफ आसमान की ओर बढ़ रहा है परंतु क्षेत्र में स्थित कंपनियां हर वर्ष पर्यावरण के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं संबंधित सभी कंपनियां पर्यावरण संरक्षण के नाम पर खर्च कर रही राशि ना काफी है यदि कंपनियों की बात को सही भी मान लिया जाए तो पर्यावरण संरक्षण को लेकर कोई ठोस पहल क्यों नजर नहीं आ रहा है।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर कहा जाए तो जिले में स्थित कंपनियां अभी तक गंभीर नहीं हुई है क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में स्थापित कंपनियों के द्वारा यदि सही मायने में सही दिशा में पैसा खर्च किया जाए तो सिंगरौली जिले के हालात बदल सकते हैं।
क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों का आलम यह है कि कहीं लोग कोयले की धूल कोयले की परत में रहने को मजबूर हैं तो कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां पर लोग फ्लाई एस के बीच रहने को मजबूर हैं ऐसे में लोगों की स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है प्रदूषक तत्वों पर नजर रखने वाले क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय के जिम्मेदार भी इस पूरे मामले पर कार्रवाई महज नाम मात्र की करते हैं।