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“इंजीनियर्स डे”, पर विशेष जाने क्यों मनाया जाता है इंजीनियर्स डे ?

"इंजीनियर्स डे", पर विशेष जाने क्यों मनाया जाता है इंजीनियर्स डे ?

"इंजीनियर्स डे", पर विशेष जाने क्यों मनाया जाता है इंजीनियर्स डे ?

भारत सरकार द्वारा साल 1968 में भारत के महान अभियंता और भारत रत्न डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जन्मतिथि 15 सितंबर को ‘अभियंता दिवस’ घोषित किया गया था। इंजीनियर्स डे (अभियंता दिवस) मनाने का लक्ष्य हमारे देश के युवाओं को इंजीनियरिंग के करियर के प्रति प्रेरित करना है और जिन इंजीनियरों ने हमारे देश के उत्थान में अपना योगदान दिया है उनकी सराहना करना है।

बतौर व्यक्तिगत आविष्कारक बैढ़न निवासी रियाज़ रफीक़ सिंगरौली जिला के सबसे पहले आविष्कारक हैं जिन्हें अपने आविष्कार का भारतीय पेटेंट ओफिस से पेटेंट मिला है।

रियाज़ रफीक़ को अब तक दो आविष्कारों का पेटेंट मिल चुका है और कुछ पेटेंट अभी लंबित हैं।

जिले के होनहार इंजीनियर और आविष्कारक रियाज रफीक ने अपने जन्म भूमि सिंगरौली का नाम विस्व पटल में दर्ज कराने में अपना योगदान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसके लिए उनका पहल सराहनीय है।

हमने स्विस घड़ी, जर्मन कारों और प्रौद्योगिकी की गुणवत्ता के बारे में बहुत कुछ सुना है। लेकिन वाक्यांश “सिंगरौली मेकैनिज्म” आपको कुछ विरोधाभासी लगता होगा। अफसोस सरहद पार भी जिस “सिंगरौली मेकैनिज्म” के शोध के चर्चे विदेशी अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ वैज्ञानिकों के द्वारा प्रकाशित रिसर्च पेपर में किया गया है उसके बारे में स्थानीय लोगों को भी मालूम नहीं है।

रियाज़ ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रुड़की के एक अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में मोबाइल रोबोटिक्स टेक्नोलॉजी के लिये मेकैनिज़्म क्षेत्र में अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया था।

वरिष्ठ वैज्ञानिकों के समीक्षकों के बोर्ड ने रियाज़ के रिसर्च पेपर को क्षेत्र में योगदान माना था। यह जानना यहां दिलचस्प होगा कि रियाज़ ने रिसर्च पेपर में अपने आविष्कार किये हुए इस मेकैनिज़्म का नाम “सिंगरौली 1.0” दिया है। जिसमे “1.0”, इस मेकैनिज़्म का पहला संस्करण दर्शाता है। रियाज़ ने इसका एडवांस संस्करण डिज़ाइन कर लिया है।

बहुत सारी खुबियों से लैस सबसे कम मोटर इस्तेमाल करने वाले इस रोबोटिक मशीन से अलग अलग सतहों और बड़े अवरोधों को आसानी से पार किया जा सकेगा। इसका इस्तेमाल रिमोट से निगरानी, पुलिस गश्त, सैन्य अभियान, आत्मघाती मिशन और अंतरिक्ष में अन्वेषण के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है। इस शोध को रियाज़ ने अपने व्यक्तिगत संसाधनों से अकेले किया है।

रियाज़ के इसी रिसर्च पेपर को बाद में उत्तरी अमेरिका की युनिवर्सिटी और संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण मध्य क्षेत्र के टेक्सास युनिवर्सिटी में कार्यरत अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के टीम ने बाकायदे आधार बना कर उनके काम को आगे बढ़ाया है। और फिर तीन रिसर्च पेपर प्रकाशित किया है। उन्होंने अपने रिसर्च पेपर में माना है कि रियाज़ ने अपने रोबोटिक मशीन में मेकैनिज़्म से सभी आवश्यक डिज़ाइन फीचर को हासिल किया है।

उनके शोध कार्य को वहां के उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा वित्त पोषित किया गया था। वहीं नेशनल ताइवान युनिवर्सिटी के लैब में कार्यरत वरिष्ठ वैज्ञानिकों के टीम ने रियाज़ के इसी रिसर्च पेपर को संदर्भ में लिया है। और फिर उन्होंने एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया है जिसमें अपने डिजाईन की तुलना रियाज़ के डिजाईन से की है। वे पिछले एक दशक से ज्यादा समय से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उनके शोध कार्य को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, ताइवान द्वारा वित्त पोषित किया गया था।

मौलाना आज़ाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, भोपाल के एक राष्ट्रीय कांफ्रेंस में मेकैनिज़्म क्षेत्र में रियाज़ के प्रेजेंट किये हुए एक दूसरे रिसर्च पेपर को बेस्ट रिसर्च पेपर अवार्ड से नवाजा जा चुका है।

रियाज़ रफीक़ ने शारीरिक रूप से दिव्यांग लोगों के जीवन को आसान बनाने और उन्हें चलने फिरने में आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने व्यक्तिगत संसाधनों, धन और दस साल से अधिक समय का निवेश कर “सीढ़ी चढ़ने वाला व्हीलचेयर” का आविष्कार कर और फिर दो पेटेंट प्राप्त कर पहले ही तमाम अखबारों कि सुर्खियां बटोर चुके हैं। पेटेंट मिलने पर रियाज़ रफीक़ का साक्षात्कार ऑल इंडिया रेडियो, आकाशवाणी भोपाल द्वारा प्रसारित किया गया था।

हाल ही में राष्ट्रीय स्तर के स्टार्टअप चैलेंज “एनसीएल-आईआईटी बीएचयू क्लीनटेक इनोवेशन चैलेंज 2022”, के फाइनल राउंड में संपूर्ण भारत से टॉप 15 इनोवेटर्स में से एक के रूप में चुने गए हैं।

आविष्कार सिर्फ एयर कंडीशन लैब और कीमती उपकरण से नहीं होते यह बात रियाज़ ने साबित कर दिया है।

ऐसे आविष्कार जिनकी दिव्यांगों को सख्त जरूरत है, उन्हें जल्द से जल्द वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए। लेकिन अफसोस दो पेटेंट मिलने के बावजूद भी अभी तक रियाज़ के आविष्कार को विकसित करने और परीक्षण करने के लिए सीएसआर या सरकार द्वारा किसी भी तरह से कोई फंड या अनुदान प्राप्त नहीं हुआ है।

जिन प्रतिभाओं का हम सम्मान करेंगे हमारी नई युवा पीढ़ी उन्हीं को अपना आदर्श मानती हैं और उस राह का अनुकरण करने की कोशिश करती हैं।

अब देखना यह है कि प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन क्या रुख इख़्तियार करती हैं और ऐसे व्यक्तिगत आविष्कारक एवं वैज्ञानिक प्रतिभाओं का कब सुध लेती हैं। क्योंकि इसी से यह तय हो जायेगा कि युवा पीढ़ी किस चीज से प्रेरित होंगे और देश को अपना योगदान किस तरह से देंगे।

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