चार दिनों तक खड़े रहे कबाड़ से लदे दो वाहन
प्रबंधन ने नहीं की कोई कार्यवाही
सिंगरौली~: देश में एक जुमला वर्षों से चर्चा का विषय बना हुआ है। ‘मोदी है तो मुमकिन हैÓ। देश पर यह जुमला राजनीतिक गलियारों में सुर्खियों में रहा है। यह जुमला एनसीएल प्रबंधन पर भी लागू होता दिखायी दे रहा है। संविधान की सारी धाराओं को अपने हाथ में लेकर कोयला उत्पादन करने वाला एनसील प्रबंधन कुछ भी कर सकता है, सब मुमकिन है।
इन दिनों एनसीएल प्रबंधन की दो घटनाएं काफी चर्चा में हैं। एक घटना में बताया जाता है कि एनसीएल की जयंत परियेाजना की खदान में कबाड़ियों की हिमाकत यहां तक पहुंची की तीस टन के स्थान पर लगभग ३२ टन कबाड़ भर लिया गया। अपुष्ट सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दोनों वाहनों को कांटा नंबर ४ पर सुरक्षा विभाग द्वारा खड़ा करा लिया गया। बताते हैं कि जो वाहन कबाड़ से लदे खड़े थे उनकी क्षमता १६ टन की होती है। लेकिन उन वाहनों में तीस टन से ऊपर माल लदा होने से सुरक्षा विभाग ने उसे वहीं खड़ा करवा लिया। मामले की जानकरी जब प्रबंधन को लगी तो चिरपरिचित खुसुर-फुसुर शुरू हो गयी और यह खुसुर-फुसुर चार दिनों से चल रही है। समाचार लिखे जाने तक दोनों वाहन जयंत परियोजना के खदान के कांटा नंबर ४ पर यथावत बताये जाते हंै। जब घटना की जानकारी मुख्य सुरक्षा अधिकारी श्री वी.के.सिंह से साझा की गयी तो कुछ देर के दरियाफ्त के बाद उन्होने बताया कि दोनों वाहनों को खाली कराया जा रहा है। वाहन क्यों चार दिन तक खड़े रहे? क्यों नहीं इन्हें पुलिस के सुपुर्द नहीं किया गया? क्यों बिना कार्यवाही के माल खाली करवाया जा रहा है? यह निर्णय परियोजना के किस सक्षम अधिकारी के आदेश पर लिया जा रहा है? यह सारी बाते अभी अंधेरे में हैं, अज्ञात हैं।
जानकार सूत्रों की मानें तो दोनों वाहनों पर जो माल लदा था उसका लिंक खनहना बैरियर के पास के एक कबाड़ी से जोड़ा जा रहा है। बताते हैं कि कथित कबाड़ी इतना पहुंच वाला है कि दो नंबर का काम करते हुये भी उसकी सेहत पर कभी कोई आंच नहीं आती। शायद जयंत परियेाजना में हो रही कार्यवाही उसी की पहुंच का ही परिणाम है।