महामना के विचार आज भी प्रेरणा स्रोत : प्रोफेसर रामसागर मिश्रा।

महामना के विचार आज भी प्रेरणा स्रोत : प्रोफेसर रामसागर मिश्रा।

महामना का सांस्कृतिक राष्ट्र चिंतन विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ।

अनंत जी ने 20वीं सदी के स्वर्ग में सूत्रधार के रूप में योगदान दिया: डॉ. स्वर्ण सुमन।

भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान का महत्वपूर्ण केंद्र: डॉ. बाला लक्षेन्द्र।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (वाराणसी)

महामना का संस्कृत राष्ट्रीय चिंतन आज के समय में भी अवतरित है। उनके विचार सदैव सिखाते हैं कि राष्ट्र की सच्ची शक्ति उनके सांस्कृतिक रेगिस्तान में निहित है। यदि हम एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा रहना होगा और अपने मसालों का सम्मान करना होगा। महामना के विचार आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं और हमें बताते हैं कि राष्ट्र निर्माण में संस्कृति और शिक्षा का कितना महत्वपूर्ण योगदान होता है। महामना पंडित मदन मोहन इंटरनैशनल जी ने अपने जीवन काल में जो काम किया, उसमें भारतीय संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। उन्होंने न केवल शिक्षा और भाषा के माध्यम से भारतीय संस्कृति और सिगरेट बनाने का प्रयास किया, बल्कि अपने विचारों और कार्यों से भारतीय समाज को अपनी सांस्कृतिक पहचान स्थापित करने का सिद्धांत दिया। उक्त बातें काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भारत अध्ययन केंद्र में मंगलवार को आयोजित होने वाले धार्मिक सम्मेलन और शिक्षा संस्कृति संवर्धन न्यास के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित महामना का सांस्कृतिक विचार विषयक राष्ट्रीय महासभा में ऑनलाइन माध्यम से विशिष्ट वक्ता के रूप में जुड़े हुए शहीद नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामसागर मिश्रा ने कही।

कार्यक्रम के सहसंयोजक डॉ. गोल्डन सुमन ने महामना पंडित मदन मोहन की विचारधारा की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि महामना की भावना में भारत की आत्मा, उसकी प्राचीन संस्कृति, आध्यात्मिकता और जीवन शैली निहित है। भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने और भारतीय समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने के उद्देश्य से जी ने 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की, उनका उद्देश्य भारतीय संस्कृति और संस्कृति को आधुनिक शिक्षा प्रणाली के साथ जोड़ना था। अनंत जी ने 20वीं सदी के जागरण में सूत्रधार के रूप में योगदान दिया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के लिए उनके समय-समय पर विभिन्न पत्रों का संपादन एवं प्रकाशन किया गया। जिसमें मुख्य रूप से 1960 में अभ्युदय, 1909 में क्रांतिकारी और 1910 में प्रतिबंध सहित 1920 से 1946 तक हिंदुस्तान टाइम्स के निर्देशन पद के दायित्व का जिक्र करना महत्वपूर्ण रहा।

पत्रकारिता विभाग के डॉक्टर बाला लक्षेन्द्र ने कहा कि वहां के पंडित मदन मोहन मोहन जी ने शिक्षा संस्कृति और भाषा को एक साधन के रूप में देखा कि किस राष्ट्र के चरित्र का निर्माण होता है। उन्होंने भारतीय विश्व सांस्कृतिक रहस्य को पुनर्जीवित करने और उसे पाताल पर लाने का सपना देखा था। इस दिशा में वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की जो आज भी भारतीय संस्कृति और ज्ञान का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।

कार्यक्रम के संयोजक डॉ. विनोद आइलैंड ने कहा कि महामना का राष्ट्रवाद किसी भी सीमा पर बढ़ा हुआ नहीं था। उनके राष्ट्र नामकरण में स्थान में विविधता में एकता का सिद्धांत महत्वपूर्ण था। भारत जैसे बहु सांस्कृतिक देश में उन्होंने विभिन्न धर्मो प्रवचन और संप्रदाय को साथ लेकर चलने का सपना देखा। उनके लिए भारतीय संस्कृति का अर्थ था – सभी धर्मों और सेनाओं का सम्मान रूप से आदर करना और उन्हें एक सूत्र में पिरोना देना।

कार्यक्रम के सचिव डॉ. ऑर्केस्ट्रा ने इंट्रोडक्शन उद्बोधन और लीडरशिप प्रोफेसर शीला गुप्ता ने दिया। कार्यक्रम में लगभग 400 फ़्रैंचाइज़ ने भाग लिया और सभी को प्रतिपूर्ति पत्र भेजा गया। कार्यक्रम की शुरुआत महामना पंडित मदन मोहन इंटरलोक की प्रतिमा पर प्रवचन एवं दीप प्रज्वलन किया गया। पार्टिबन के सदस्यों द्वारा सहयोगियों का स्वागत अभिनंदन समारोह की शुरुआत की गई। कार्यक्रम में अतिथि कलाकार ने इस तरह के और आयोजन की आवश्यकता को बल दिया, ताकि महामना के विचारों को और अधिक प्रसारित किया जा सके।

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