जिले के कुछ थानों व चौकियों से कारखासो का नहीं हो रहा मोह भंग

जिले के कुछ थानों व चौकियों से कारखासो का नहीं हो रहा मोह भंग

जिन थानों से कभी हुए थे लाइन अटैच, फिर पहुंच गए इन्ही थानों में कारखास

थानों के ‘कारखास’, एकदम खासम खास

सिंगरौली ~:    सिंगरौली जिले के कुछ पुलिस कर्मी इन दिनों अपनी मनचाहे जगहों पर अपनी नौकरी के लिए जाने जा रहे हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि यहां के रहने वाले कुछ ब़ुद्धजीवी व स्थानीय लोगों में चर्चा का विषय हमेशा बना ही रहता है। पुलिस थानोें में कुछ ऐसे कारखास है जों अपनी मनचाही जगहों में अपने हिसाब से नौकरी करते है। अगर किसी कारणवश ये विवाद के कारण यहां से तबादला कहीं और जगहों पर कर दिया जाता है तो वे दो चार महीने अपना ड्यूटी कर फिर उसी जगह अपनी पदस्थापना कराने में महिर होते हैं और वे अपने मनचाही जगहों पर पहुंच ही जाते हैं चाहे इसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े।

कानून व्यवस्था कटखरे में
पुलिस विभाग में सबसे कमजोर कड़ी के रूप में शुमार थानों पर इंचार्ज की कृपा से तैनात किए जाने वाले कारखासों की वजह से आज भी कानून व्यवस्था कटघरे में खड़ी है। हालत यह कि शायद ही कोई थाना ऐसा हो जहां इनकी मौजूदगी मजबूती से न हो। यह थाने पर किसी रोल मॉडल से कम नहीं होते हैं। थानेदार के अति करीबी माने जाते हैं तो विभागीय अधिकारियों के साथ ही राजनीतिक लोगों से सेटिंग करने में इन्हें महारत हासिल होती है। थानों को व्यवस्थित चलाने में इन ‘कारखासों’ की अहम भूमिका होती है। इनका आदेश इंचार्ज के आदेश की तरह होता है। इंचार्ज के पास कोई बड़ी समस्या जाने से पहले कारखास के पास से ही होकर गुजरती है। इंचार्ज को किससे कब मिलना है, इसकी भी सेटिंग वही करते हैं।

सभी के संपर्क में रहते हैं कारखास
स्थानीय लोगों में चर्चा है कि कई थानों पर हालत है कि इंचार्ज बिना ‘कारखास’ के एक कदम भी नहीं चल पाते। वह थाना क्षेत्र के अपराधियों से लेकर जनप्रतिनिधियों के संपर्क में रहते हैं। यहां तक कि इंचार्ज के व्यक्तिगत काम भी उन्हीं के जिम्मे रहता है। सुबह ‘साहब’ के उठने से पहले ‘कारखास’ उनके आवास पर पहुंच जाते हैं। फिर क्या करना है और कब किससे मिलना है, कौन मिलने आ रहा और क्षेत्र में कहां क्या घटित हुआ आदि की पूरी जानकारी देते हैं। यहां तक कि थाने में तैनात अन्य सिपाही भी अपनी समस्या इंचार्ज से कहने के बजाय ‘कारखास’ से ही बताते हैं। वह इसकी जानकारी इंचार्ज को देते हुए निस्तारण कराकर उन पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। इससे सिपाही भी इसका विरोध नहीं कर पाते। यह थाने के अंदर व बाहर दोनों साइड पर अपना नियंत्रण रखते हैं। क्षेत्र की अधिकांश घटनाओं को मैनेज कराने में इनकी अच्छी भूमिका रहती है। कहीं-कहीं तो अपराध को बढ़ावा देने में भी ‘कारखास’ का अहम रोल माना जाता है। जुआ, सट्टा के अड्डे चलवाने के साथ ही नशा विक्रेताओं, खनन माफियाओं, अवैध कारोबारियों से इनकी साठगांठ तगड़ी रहती है। अधिकांश समय यह सादे ड्रेस में रहते हैं। किसी बड़े अधिकारी के आने पर ही ये वर्दी धारण करते हैं। अवैध रूप से मिलने वाले धन के कारण इंचार्ज इनके इशारे पर नाचने लगते हैं। ‘कारखास’ से थाने पर तैनात सिपाही भी पंगा लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। ऐसे में कहे तो इनकी भूमिका चूल्हे से लेकर चौकी तक होती है जिससे आज अपराध से लेकर कानून व्यवस्था तक लड़खड़ाते ही चल रहा है।

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