संस्था की कारीगरी से लुट रहे हैं अभिभावक
सिंगरौली~: सिंगरौली जिले में संचालित प्राईवेट शिक्षण संस्थाएं आजकल सुर्खियों में हैं। चूंकि बच्चों के प्रवेश तथा किताब का दौर चल रहा है। यंू तो उनकी फीस को लेकर के अभिभावकों में हमेशा से असंतोष रहा है लेकिन प्राईवेट शिक्षण संस्थाओं की भारी भरकम फीस को बर्दाश्त कर लेने के बाद अभिभावकों के सिर पर कॉपी किताब की खरीदी तथा स्कूल डे्रस की खरीदी भारी पड़ रही है। विभिन्न शिक्षण संस्थाओं द्वारा यह निर्देश दिया जा रहा है कि अमुक दुकान से किताब एवं कापियां तथा ड्रेस की खरीदी की जाये जोकि शासन के नियमों के विपरीत है।
मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने पदारूढ़ होने के तुरंत बाद आदेश जारी किया था कि किसी भी शिक्षण संस्था द्वारा अभिभावकों को यह निर्देश कत्तई न दिया जाये कि निर्दिस्ट दुकानों से ही कॉपी, किताब एवं स्कूल डे्रस खरीदें। मुख्यमंत्री ने आदेश दिया था कि आरोपित संस्थाओं को दो लाख रूपये तक का अर्थदण्ड देना पड़ सकता है। लेकिन सिंगरौली की शिक्षण संस्थाओं पर मुख्यमंत्री के आदेश का कोई असर नहीं पड़ा है। मुख्यमंत्री के आदेश को तॉक पर रखकर शिक्षण संस्थाएं स्कूल के समूहों में बच्चों को संदेश डालकर अभिभावकों के लिए निर्दिष्ट दुकानों का हवाला दिया जा रहा है। जहां से कि स्कूल ड्रेस, कॉपी किताब आदि की खरीदी किया जाये।
शिक्षण संस्थाओं की कारीगरी की फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती। शिक्षण संस्थाओं द्वारा ऐसी पब्लिकेशन की किताबें बच्चों के सैलेबस में डाली जाती हैं जो जिले में मात्र एक दुकान पर ही उपलब्ध होती हैं। जबकि सरकार का निर्देश है कि शिक्षण संस्थाओं को एनसीआरटी की किताबें प्रेसक्राइव की जायें जो कि हर दुकानों पर उपलब्ध होती है तथा सस्ती भी होती हैं। यहां भी शिक्षण संस्थाओं द्वारा मुख्यमंत्री के आदेश को तॉक पर रख दिया गया है। जयंत क्षेत्र में एक नामी शिक्षण संस्थान है जहां की स्कूल ड्रेस सिर्फ एक दुकान पर ही उपलब्ध होती है। क्योंकि शिक्षण संस्था द्वारा स्कूल ड्रेस के डिजाइन तथा रंग इस ढंग से प्रेसक्राइव किया जाता है कि वह उसी दुकान पर उपलब्ध हो। इतना ही नहीं उक्त शिक्षण संस्था को एक स्कूली सामान बेचने वाले व्यवसायी द्वारा सुविधा शुल्क देने की बात भी चर्चा का विषय बनी हुयी है। सूत्रों की मानें तो उक्त व्यवसायी उक्त शिक्षण संस्था को सुविधा शुल्क अदा करके स्कूल ड्रेस में परिवर्तन करा लेता है और परिवर्तित डे्रस की सिलाई करवाकर अपने दुकान में रख लेता है। स्कूल ड्रेस के रंग और डिजाईन इतने क्रिटिकल होते हैं जो कि आम तौर पर सभी दुकानों पर नहीं मिलते हैं। इसलिए मजबूर होकर अभिभावक को उसी दुकान की शरण लेनी पड़ती है। इतना ही नहीं उस शिक्षण संस्था में सप्ताह में तीन दिन तीन तरह का पोषाक पहनकर बच्चों को आने की हिदायत दी गयी है और वो तीनों पोषाक इस तरह के हैं कि वह उसी दुकान पर उपलब्ध होते हैं। यह गोरखधंधा जिले के कई और शिक्षण संस्थाओं द्वारा चलाया जा रहा है।
एक अभिभावक ने बताया कि लोटस वैली पब्लिक स्कूल अमझर तथा ज्योति हाईस्कूल जयंत से प्रेसक्राइव किताबों को खरीदने वह विद्यालय द्वारा निर्दिष्ट दुकान पर पहुंचा, उसने छ: हजार रूपये की किताबें खरीदी और बिल मांगने पर दुकानदार ने कहा कि पूरी कीमत का बिल वह कापियों का दे सकता है जबकि किताब का बिल नहीं दे सकता। शिक्षण संस्थाओं का यह गोरखधंधा समझ से बाहर है।
उद्योगों में सरनाम शिक्षा में बदनाम
दशकों से सिंगरौली उद्योगों में सरनाम तथा शिक्षा में बदनाम रहा है। जब सिंगरौली एक तहसील के अस्तित्व में था तब से लेकर आज तक केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा करोड़ो रूपये बर्बाद करने के बावजूद जिले में साक्षरता का प्रतिशत आसातीत अनुपात में नहीं बढ़ा है। साक्षर तथा शिक्षित होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। सिंगरौली में शिक्षितों का अनुपात तो बहुत कम है। साक्षरता भी इस तरह की है कि एक प्रश्र बारहवीं के छात्र या छात्रा से पूछा जाये तो शिक्षण प्रक्रिया पर शर्म आने लगती है। यह कहानी तो प्राईवेट शिक्षण संस्थाओं की रही है इसके अतिरिक्त पूरे जिले में सरकारी शिक्षण संस्थाएं भी संचालित हैं। वहां भी भ्रष्टाचार की अनेको अनेक कहानिया सुनने को मिलती हैं। नतीजा सबके सामनें हैं। जिले में जिला शिक्षा अधिकरी भी बैठते हैं। विभाग का पूरा अमला कार्यरत है। सरकार के विभिन्न कानूनों को धता बताते हुये शिक्षण संस्थाएं संचालित की जा रही हैं। लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। सिंगरौली जिले की भावी पीढ़ी का भविष्य जिन शिक्षण संस्थाओं के हाथ है वे उसे ऊपर ले जा रहे हंै कि गर्त में डाल रहे हैं यह चिंतन का विषय है।